Basant Panchami 2024 : बसंत पंचमी देवी सरस्वती को प्रसन्न करने का दिन
हर साल की तरह इस बार सरस्वती पूजा Basant Panchami 2024 को यानि 14 फरवरी 2024 को मनाई जा रही है। हर साल सरस्वती पूजा माघ माह के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन Basant Panchami 2024 का त्योहार मनाते हैं। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन जगह-जगह पंडालों, स्कूलों में मां सरस्वती की आराधना होती है। Basant Panchami 2024, ज्ञान की देवी मां सरस्वती को प्रसन्न और बुद्धि, विवेक प्राप्त करने का दिन है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवती सरस्वती का पूजन करने से माता प्रसन्न होती है। सरस्वती पूजा होने के कारण इस दिन को विद्या जयंती कहा जाता है। दिव्य शक्तियों को मानवीय आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भक्ति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय तत्ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मानुषी आकृति और भाव गरिमा से संजोया है। इनकी पूजा, अर्चना, वंदना, धारणा हमारी चेतना को देवगरिमा के समान ऊंचा उठा देती है। साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खंड़ा है।

मां सरस्वती के हाथ में पुस्तक ‘ज्ञान’ का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देती है। ज्ञान की गरिमा को समझते हुए उसके लिए मन में जिज्ञासा जाग पड़े। तो, समझना चाहिए कि सरस्वती पूजन की प्रक्रिया ने अंतःकरण तक प्रवेश पा लिया। भगवती सरस्वती का वाहन मयूर व हंस है।
Basant Panchami 2024 : सनातन परंपरा में क्या है बसंत पंचमी का महत्व
दरअसल, सरस्वती पूजा Basant Panchami 2024 के दिन तो मनाया ही जाता है। लेकिन, ये जो समय है बेहद ही खास होता है। इस समय सर्दी का प्रभाव कम होने लगता है, हल्की- हल्की ठंड और गुनगुनी धूप शरीर को नई ऊर्जा देती है। मन-मस्तिष्क में सकारात्मक भाव पैदा होते हैं। खेत-खलिहान भी पीली सरसों के रंग में रंग जाते हैं। घर में धीरे-धीरे नई फसलों का आगमन होता है। ऐसे में सरस्वती पूजा का ये पर्व सनातनी परंपरा में हर तरह से नई ऊर्जा का संचार करने वाला है।

कर कमलों में वीणा धारण करने वाली मां भगवती वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती हैं कि हमारे हृदय रूपी वीणा सैदव झंकृत रहनी चाहिए। हाथ में वीणा का अर्थ संगीत गायन जैसी भावप्रवण प्रक्रिया को अपनी प्रसुप्त सरसता सजग करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए। हम कला प्रेमी, कला पारखी, कला के पुजारी और संरक्षक भी बनें। मयूर अर्थात् मधुरभाषी। हंस अर्थात नीर-क्षीर विवेक। हमें मां सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर और हंस बनना ही चाहिए। मधुर, नम्र, विनीत, सज्जनता, शिष्टता अपनी वाणी विचार में लानी चाहिए।

मां सरस्वती की पूजा -अर्चना का तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार और शिरोधार्य किया जाए। प्राचीनकाल में जब देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना करते थे, तब हमारे देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। विश्व भर के लोग सत्य-ज्ञान की खोज में भारत आते थे। यह त्योहार हमारे लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह माला इस दिन उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी, जो लोग अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने-बढ़ाने का दृढ़ संकल्प करते हैं, संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भगीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते हैं।
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Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।