Kisan Andolan : कमजोर पड़ता किसान आंदोलन, आपसी मतभेद बना कारण
एमएसपी और अन्य मांगों को लेकर दिल्ली-शंभू बॉर्डर पर पंजाब और हरियाणा के किसान डेरा जमाए हुए हैं। अब इस Kisan Andolan में एक नया मोड़ सामने आया है। जानकारी के लिए बता दें कि जहां हरियाणा और केंद्र की सरकार किसान संगठनों से लगातार वार्ता के जरिए किसी हल पर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं अब भारतीय किसान यूनियन ने किसान आंदोलन में नई घोषणा कर दी है। दरअसल, भारतीय किसान यूनियन की तरफ कहा गया है कि 26 फरवरी को Kisan Andolan के समर्थन में हाईवे जाम किया जाएगा। किसान ट्रैक्टर लेकर हाईवे पर निकलेंगे और जाम लगाकर प्रदर्शन करेंगे।
इस प्रदर्शन की तैयारी के क्रम में भाकियू जिलाध्यक्ष अनुराग चौधरी ने शनिवार को गांव-गांव जाकर बैठक की। Kisan Andolan के समर्थन में जुटने के लिए किसानों और कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक संख्या में हाईवे पर पहुंचने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर हाईवे पर प्रदर्शन किया जाएगा और विश्व व्यापार संगठन का पुतला दहन किया जाएगा। बैठक में निर्णय लिया गया कि किसान शहर में चार जगहों पर हाईवे पर जाम लगाएंगे। चार जगह कौन सी होंगी, इस विषय में आज निर्णय लिया जाएगा।
Kisan Andolan : आंदोलन में आया नया मोड़
लेकिन, इन्ही सबके बीच Kisan Andolan कमजोर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। बताते चलें कि किसान नेताओं में आपसी मतभेद की खबरें लगातर सामने आ रही है। जिससे Kisan Andolan में आए छोटे-बड़े किसान लगातार अपना मनोबल खो रहे हैं। एक जानकारी सामने निकल कर आ रही है कि वर्ष 2020 में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसान आंदोलन चलाया गया था। अब इस बार यानी किसान आंदोलन 2.0 में यह किसान मोर्चा दूरी बनाए हुए है। इस बार का किसान आंदोलन केवल दो गुटों के बैनर तले चल रहा है, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा ( गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर संघर्ष कमेटी प्रमुख है।

किसान आंदोलन में शामिल संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बैठक की। जिसमें शंभू और खनौरी पर किसानों पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का एलान किया। संगठन के इस एलान से ऐसा की किसानों में बढ़ रहे आपसी मतभेद अब दूर हो जाएंगे। लेकिन, के अध्यक्ष ने कहा है कि फिलहाल जो किसान आंदोलन चल रहा है वो सिर्फ दो किसान संगठनों से जुड़ा हुआ है। अब इन संगठनों का आंदोलन करने का तरीका सही है या गलत, इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं बनती है।
हमारे संगठन ने जब मानांवाली में मोर्चा लगाया था तो उस समय इन जत्थेबंदियों ने हमारा साथ नहीं दिया था। तब हमने तो नहीं कहा था कि साथ क्यों नहीं दिया। फिर अब हम पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं कि दिल्ली कूच में साथ क्यों नहीं दिया। हमारे बीच कितने ही वैचारिक मतभेद हों, लेकिन फिर भी जब सीमा पर किसानों पर गोले फेंके गए, हमारी जत्थेबंदी ने रेल रोको आंदोलन किया, टोल फ्री कराए और भाजपा नेताओं के घरों के बाहर प्रदर्शन किया।
किसान आंदोलन में किसान संगठनों का दूरी बनाना एक अलग ही संकेत देता है। ऐसा लग रहा है कि कुछ ही संगठन ऐसे हैं जो किसानों के हितों की आड़ लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं। लेकिन, इन सब के बीच एक बात तो तय है कि इन आंदोलनों के कारण आमजन जीवन काफी अस्तव्यस्त हो गया है।

दरअसल, जहां इन आंदोलित किसानों के साथ केंद्र सरकार हरसंभव वार्ता के लिए तैयार है। यह किसानों के हित में इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण समाधान चाहती है। अभी तक चार दौर की वार्ता के बावजूद आंदोलन पर अड़े किसानों को केंद्र ने पांचवें दौर की बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। साथ ही शांति बनाए रखने की भी अपील की है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सरकार एमएसपी की मांग, फसल विविधीकरण, पराली एवं पिछले आंदोलन के दौरान किसानों पंजाब-हरियाणा सीमा पर बुधवार को सुरर्मियों सेाकेद दर्ज प्राथमिकी को हटाने जैसे मुद्दों पर बातों के लिए कृषि मंत्री ने प्रदर्शनकारी किसानों से शांति बनाए रखने और समाधान तलाशने के लिए बातचीत में शामिल होने की अपील की है। मुंडा ने कहा कि नीति बनाते समय पूरे देश के किसानों के हित को ध्यान में रखना जरूरी है।
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Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।