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हिंदू धर्म

हिंदू धर्म में विवाह:/ विवाह का नाम आते ही हमारे दिमाग में युवक-युवती का जोड़ा एक पारम्परिक परिधान के साथ बड़े से उत्सव में एक दूसरे के साथ जीवन भर साथ चलने के लिए परिवार, समाज की स्वीकृति लेने के उत्सव को देखते है। जिसमे अभी कुछ दिन से मुकेश अम्बानी के सुपुत्र अनंत और राधिका का प्रीवेडिंग सेलिब्रेशन की चर्चा पुरे विश्व में है। अब ऐसे में बहुत सारे देशी-विदेशी लोगों के जेहन में यह जरूर आता होगा की शादी को इतना धूम-धाम से मनानें और विवाह में इतना खर्च करने का क्या कारण हो सकता है। इस लेख में यह सब जानने का प्रयास करते हैं।

विवाह दो व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक, धार्मिक और कानूनी रूप से स्वीकृत बंधन है, जिसमें वे जीवन भर साथ रहने, एक दूसरे का सहारा बनने और परिवार बनाने का वादा करते हैं। यह एक ऐसा बंधन है जो दो आत्माओं को जोड़ता है और उन्हें एक नया जीवन शुरू करने का अवसर देता है।

विवाह का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। यह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन भी होता है। विवाह से सामाजिक एवं धार्मिक दायित्वों का पालन होता है। यह प्रेम, स्नेह और विश्वास का प्रतीक है। विवाह बच्चों को एक सुरक्षित और प्यार भरा वातावरण प्रदान करता है, जिससे उनका सर्वांगीण विकास होता है।

दो प्रकार:

  1. धार्मिक विवाह: यह विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार किया जाता है।
  2. सिविल विवाह: यह विवाह कानूनी रूप से पंजीकृत होता है और इसमें धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन नहीं होता है।

प्राचीनकाल से ही हिन्दू धर्म ग्रंथों में विवाह को बहुत महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है, और इन्हे अलग-अलग श्रेणी में बांटा गया है।

हिंदू धर्म में शादियां आठ प्रकार की होती हैं, जिनका महत्व इस प्रकार है:

1. ब्रह्म विवाह: यह सबसे श्रेष्ठ विवाह माना जाता है, जिसमें कन्या और वर दोनों अपनी स्वेच्छा से विवाह करते हैं। इस विवाह में वर कन्या को दान में स्वर्ण मुद्राएं, गाय और वस्त्र देता है।

2. दैव विवाह: इस विवाह में कन्या को देवताओं की सेवा के लिए समर्पित किया जाता है।

3. आर्ष विवाह: इस विवाह में कन्या का पिता वर को गाय और बैल दान में देता है।

4. प्राजापत्य विवाह: इस विवाह में कन्या का पिता वर को कन्या की देखभाल करने का दायित्व सौंपता है।

5. असुर विवाह: इस विवाह में वर कन्या को खरीदकर लाता है।

6. गंधर्व विवाह: इस विवाह में कन्या और वर अपनी स्वेच्छा से प्रेम विवाह करते हैं।

7. राक्षस विवाह: इस विवाह में वर कन्या को बलपूर्वक अपने घर ले जाता है।

8. पैशाच विवाह: इस विवाह में वर और कन्या नशे की हालत में मैथुन करते हैं और बाद में विवाह करते हैं।

इन आठ प्रकारों में से ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह और प्राजापत्य विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है, जबकि असुर विवाह, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह और पैशाच विवाह को निम्न श्रेणी का माना जाता है।

हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, जो सात जन्मों तक चलता है। यह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन होता है, बल्कि दो परिवारों का मिलन भी होता है। विवाह के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने और संस्कृति को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

हिंदू विवाह के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

  • धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता है। विवाह के माध्यम से पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं और जीवन भर साथ रहने का वचन देते हैं।
  • सामाजिक महत्व: हिंदू समाज में विवाह को एक महत्वपूर्ण सामाजिक घटना माना जाता है। विवाह के माध्यम से दो परिवारों का मिलन होता है और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्व: हिंदू विवाह में कई रीति-रिवाज और परंपराएं शामिल हैं, जो हिंदू संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। विवाह के माध्यम से इन रीति-रिवाजों और परंपराओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जाता है।
  • आर्थिक महत्व: हिंदू विवाह में दहेज प्रथा भी शामिल है, जो पति-पत्नी को जीवन शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है।
  • मानसिक महत्व: हिंदू विवाह पति-पत्नी को एक दूसरे का साथ और सहारा प्रदान करता है। विवाह के माध्यम से पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति प्रेम और स्नेह व्यक्त करते हैं।

हिंदू धर्म में शादियां केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होतीं, बल्कि इनका धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और मानसिक महत्व भी होता है। आज के इस लेख में हम विवाह की श्रेणियों के बारे में विस्तार से जानेगे।

हिंदू धर्म में विवाह

1. ब्रह्म विवाह: हिंदू विवाह का सर्वोच्च रूप

ब्रह्म विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से सबसे श्रेष्ठ विवाह माना जाता है। यह विवाह अपनी शुद्धता, स्वेच्छा और पवित्रता के लिए जाना जाता है।

ब्रह्म विवाह की विशेषताएं:

  • स्वेच्छा: इस विवाह में वर और कन्या दोनों अपनी स्वेच्छा से विवाह करते हैं।
  • दान: वर कन्या को दान में स्वर्ण मुद्राएं, गाय और वस्त्र देता है।
  • देवताओं का आशीर्वाद: यह विवाह देवताओं के आशीर्वाद से संपन्न होता है।
  • पवित्रता: यह विवाह पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है।
  • सामाजिक स्वीकृति: यह विवाह समाज द्वारा पूर्ण रूप से स्वीकार किया जाता है।

ब्रह्म विवाह का महत्व:

  • पवित्र बंधन: ब्रह्म विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, जो सात जन्मों तक चलता है।
  • प्रेम और स्नेह: यह विवाह प्रेम और स्नेह पर आधारित होता है।
  • धर्म का पालन: यह विवाह हिंदू धर्म के नियमों और परंपराओं का पालन करता है।
  • संतान की उत्पत्ति: इस विवाह से जन्मी संतान को उत्तम माना जाता है।
  • समाज का कल्याण: यह विवाह समाज के कल्याण के लिए माना जाता है।

ब्रह्म विवाह के उदाहरण:

  • भगवान श्री राम और सीता का विवाह
  • महाराजा शिवि और उर्वशी का विवाह
  • भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह

आजकल ब्रह्म विवाह:

आजकल, ब्रह्म विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह दुर्लभ होने के कुछ कारण:

  • आधुनिक समाज में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद को अधिक महत्व दिया जाता है।
  • दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां इस विवाह को बाधित करती हैं।
  • युवा पीढ़ी में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।

ब्रह्म विवाह, हिंदू विवाह का सर्वोच्च रूप है। यह पवित्रता, स्वेच्छा और प्रेम पर आधारित होता है।

हालांकि, आजकल यह विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह आवश्यक है कि हम इस विवाह के महत्व को समझें और इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास करें।

2. दैव विवाह: देवताओं को समर्पित

दैव विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से एक है। यह विवाह अपनी विशिष्टता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।

दैव विवाह की विशेषताएं:

  • यज्ञ में समर्पण: इस विवाह में कन्या को यज्ञ में सम्यक प्रकार से कर्म करते हुए रित्विज (पुजारी) को अलंकृत कर दान में दिया जाता है।
  • देवताओं की सेवा: इस विवाह में कन्या अपना जीवन देवताओं की सेवा में समर्पित कर देती है।
  • पवित्रता: यह विवाह पवित्रता और त्याग का प्रतीक है।
  • धार्मिक महत्व: यह विवाह हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

दैव विवाह का महत्व:

  • धार्मिक कर्तव्य: दैव विवाह को धार्मिक कर्तव्य माना जाता है।
  • पुण्य प्राप्ति: इस विवाह से कन्या को पुण्य प्राप्त होता है।
  • देवताओं का आशीर्वाद: यह विवाह देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक साधन माना जाता है।
  • समाज का कल्याण: यह विवाह समाज के कल्याण के लिए माना जाता है।

दैव विवाह के उदाहरण:

  • राजा दशरथ की पुत्री शांता और श्रृंगी ऋषि का विवाह

आजकल दैव विवाह:

आजकल, दैव विवाह अत्यंत दुर्लभ हो गया है।

यह दुर्लभ होने के कुछ कारण:

  • आधुनिक समाज में व्यक्तिगत पसंद और स्वतंत्रता को अधिक महत्व दिया जाता है।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।
  • दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां इस विवाह को बाधित करती हैं।

दैव विवाह, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण विवाह है। यह पवित्रता, त्याग और धार्मिक समर्पण का प्रतीक है।

हालांकि, आजकल यह विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह आवश्यक है कि हम इस विवाह के महत्व को समझें और इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास करें।

3. आर्ष विवाह: गौदान का महत्व

आर्ष विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से एक है। यह विवाह अपनी सरलता, पवित्रता और गौदान के महत्व के लिए जाना जाता है।

आर्ष विवाह की विशेषताएं:

  • गौदान: इस विवाह में वर कन्या के पिता को गाय और बैल दान में देता है।
  • वर-कन्या की स्वीकृति: इस विवाह में वर और कन्या दोनों अपनी स्वीकृति प्रदान करते हैं।
  • सामाजिक स्वीकृति: यह विवाह समाज द्वारा पूर्ण रूप से स्वीकार किया जाता है।
  • पवित्रता: यह विवाह पवित्रता और सादगी का प्रतीक है।

आर्ष विवाह का महत्व:

  • धर्म का पालन: यह विवाह हिंदू धर्म के नियमों और परंपराओं का पालन करता है।
  • पवित्र बंधन: यह विवाह पवित्र बंधन माना जाता है, जो सात जन्मों तक चलता है।
  • प्रेम और स्नेह: यह विवाह प्रेम और स्नेह पर आधारित होता है।
  • संतान की उत्पत्ति: इस विवाह से जन्मी संतान को उत्तम माना जाता है।
  • समाज का कल्याण: यह विवाह समाज के कल्याण के लिए माना जाता है।

आर्ष विवाह के उदाहरण:

  • भगवान श्री राम और सीता का विवाह
  • महाराजा शिवि और उर्वशी का विवाह

आजकल आर्ष विवाह:

आजकल, आर्ष विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह दुर्लभ होने के कुछ कारण:

  • आधुनिक समाज में दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां इस विवाह को बाधित करती हैं।
  • युवा पीढ़ी में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।
  • सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकीकरण के कारण विवाह की रीति-रिवाजों में बदलाव आया है।

आर्ष विवाह, हिंदू विवाह का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह पवित्रता, सादगी और गौदान के महत्व पर आधारित होता है।

हालांकि, आजकल यह विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह आवश्यक है कि हम इस विवाह के महत्व को समझें और इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास करें।

4. प्राजापत्य विवाह: प्रजा की वृद्धि और गृहस्थ जीवन का प्रतीक

हिंदू धर्म

प्राजापत्य विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से चौथा विवाह है। यह अपनी सरलता, पवित्रता और प्रजा की वृद्धि के महत्व के लिए जाना जाता है।

प्राजापत्य विवाह की विशेषताएं:

  • कन्यादान: इस विवाह में कन्या का पिता वर और कन्या को एकत्र कर उनसे यह प्रतिज्ञा कराता है कि वे दोनों मिलकर गार्हस्थ्य धर्म का पालन करेंगे।
  • पूजा: वर और कन्या की पूजा की जाती है।
  • वर को अलंकारयुक्त कन्या का दान: पिता वर को अलंकारयुक्त कन्या का दान करता है।
  • सामाजिक स्वीकृति: यह विवाह समाज द्वारा पूर्ण रूप से स्वीकार किया जाता है।
  • पवित्रता: यह विवाह पवित्रता और सादगी का प्रतीक है।

प्राजापत्य विवाह का महत्व:

  • धर्म का पालन: यह विवाह हिंदू धर्म के नियमों और परंपराओं का पालन करता है।
  • पवित्र बंधन: यह विवाह पवित्र बंधन माना जाता है, जो सात जन्मों तक चलता है।
  • प्रेम और स्नेह: यह विवाह प्रेम और स्नेह पर आधारित होता है।
  • संतान की उत्पत्ति: इस विवाह से जन्मी संतान को उत्तम माना जाता है।
  • समाज का कल्याण: यह विवाह समाज के कल्याण और प्रजा की वृद्धि के लिए माना जाता है।

प्राजापत्य विवाह के उदाहरण:

  • भगवान श्री राम और सीता का विवाह
  • भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह
  • महाराजा शिवि और उर्वशी का विवाह

आजकल प्राजापत्य विवाह:

आजकल, प्राजापत्य विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह दुर्लभ होने के कुछ कारण:

  • आधुनिक समाज में दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां इस विवाह को बाधित करती हैं।
  • युवा पीढ़ी में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।
  • सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकीकरण के कारण विवाह की रीति-रिवाजों में बदलाव आया है।

प्राजापत्य विवाह, हिंदू विवाह का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह पवित्रता, सादगी और प्रजा की वृद्धि के महत्व पर आधारित होता है।

हालांकि, आजकल यह विवाह दुर्लभ हो गया है।

यह आवश्यक है कि हम इस विवाह के महत्व को समझें और इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास करें।

5. असुर विवाह: धन का लेन-देन और शोषण का प्रतीक

असुर विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से पांचवां विवाह है। यह विवाह अपनी धनवादी प्रवृत्ति, शोषण और अनैतिकता के लिए जाना जाता है।

असुर विवाह की विशेषताएं:

  • धन का लेन-देन: इस विवाह में वर कन्या के पिता को धन या वस्तुओं का भुगतान करता है।
  • कन्या की इच्छा की अनदेखी: इस विवाह में कन्या की इच्छा को कोई महत्व नहीं दिया जाता है।
  • शोषण: इस विवाह में कन्या को वस्तु के रूप में देखा जाता है और उसका शोषण किया जाता है।
  • अनैतिकता: यह विवाह अनैतिक और अमानवीय प्रथाओं पर आधारित होता है।

असुर विवाह का महत्व:

  • हिंदू धर्म में निषिद्ध: असुर विवाह हिंदू धर्म में निषिद्ध है।
  • अनैतिक: यह विवाह अनैतिक और अमानवीय है।
  • शोषण: यह विवाह कन्या का शोषण करता है।
  • समाज के लिए हानिकारक: यह विवाह समाज के लिए हानिकारक है।

असुर विवाह के उदाहरण:

  • अकबर और जोधा का विवाह (कुछ विद्वानों के अनुसार)

आजकल असुर विवाह:

आजकल, असुर विवाह लगभग समाप्त हो गया है।

यह समाप्त होने के कुछ कारण:

  • हिंदू धर्म में इस विवाह का निषेध: हिंदू धर्म में असुर विवाह निषिद्ध है।
  • सामाजिक जागरूकता: लोगों में सामाजिक जागरूकता बढ़ी है और वे इस विवाह को बुरा मानते हैं।
  • कानूनी प्रतिबंध: कई देशों में इस विवाह को कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है।

असुर विवाह, हिंदू विवाह का एक अमानवीय और अनैतिक रूप है। यह विवाह कन्या का शोषण करता है और समाज के लिए हानिकारक है।

यह महत्वपूर्ण है कि हम इस विवाह के खिलाफ आवाज उठाएं और इसे पूरी तरह से समाप्त करने का प्रयास करें।

6.गंधर्व विवाह: प्रेम और स्वतंत्रता का प्रतीक

गंधर्व विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से छठा विवाह है। यह विवाह अपनी स्वतंत्रता, प्रेम और रोमांस के लिए जाना जाता है।

गंधर्व विवाह की विशेषताएं:

  • प्रेम विवाह: इस विवाह में वर और कन्या अपनी स्वेच्छा से और प्रेम के कारण विवाह करते हैं।
  • सामाजिक स्वीकृति: गंधर्व विवाह को हिंदू धर्म में स्वीकार किया जाता है, लेकिन कुछ रीति-रिवाजों का पालन करना आवश्यक होता है।
  • आध्यात्मिक महत्व: गंधर्व विवाह को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह दो आत्माओं का मिलन होता है।
  • पवित्रता: गंधर्व विवाह पवित्रता और प्रेम का प्रतीक है।

गंधर्व विवाह का महत्व:

  • प्रेम का सम्मान: गंधर्व विवाह प्रेम का सम्मान करता है और लोगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता देता है।
  • समानता: इस विवाह में स्त्री और पुरुष समान होते हैं।
  • आध्यात्मिक विकास: गंधर्व विवाह आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
  • खुशी और समृद्धि: गंधर्व विवाह खुशी और समृद्धि का प्रतीक है।

गंधर्व विवाह के उदाहरण:

  • शकुंतला और दुष्यंत का विवाह
  • उर्वशी और पुरूरवा का विवाह
  • विश्वामित्र और मेनका का विवाह

आजकल गंधर्व विवाह:

आजकल, गंधर्व विवाह दुर्लभ हो गया है, लेकिन यह फिर से लोकप्रिय हो रहा है।

यह लोकप्रिय होने के कुछ कारण:

  • प्रेम विवाहों में वृद्धि: आधुनिक समाज में प्रेम विवाहों की संख्या बढ़ रही है।
  • सामाजिक परिवर्तन: समाज में बदलाव आ रहा है और लोग प्रेम विवाहों को स्वीकार कर रहे हैं।
  • कानूनी अधिकार: महिलाओं को कानूनी अधिकार प्राप्त हुए हैं और वे अब अपनी पसंद का जीवनसाथी चुन सकती हैं।

गंधर्व विवाह, हिंदू विवाह का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह प्रेम, स्वतंत्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

यह महत्वपूर्ण है कि हम इस विवाह के महत्व को समझें और इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास करें।

7.राक्षस विवाह: बल और हिंसा का प्रतीक

राक्षस विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से सातवां विवाह है। यह विवाह अपनी हिंसा, बलप्रयोग और अनैतिकता के लिए जाना जाता है।

राक्षस विवाह की विशेषताएं:

  • बलपूर्वक विवाह: इस विवाह में वर कन्या का अपहरण कर जबरदस्ती विवाह करता है।
  • कन्या की इच्छा की अनदेखी: इस विवाह में कन्या की इच्छा को कोई महत्व नहीं दिया जाता है।
  • हिंसा और बलप्रयोग: इस विवाह में वर कन्या के परिवार पर बल प्रयोग कर विवाह करता है।
  • अनैतिकता: यह विवाह अनैतिक और अमानवीय प्रथाओं पर आधारित होता है।

राक्षस विवाह का महत्व:

  • हिंदू धर्म में निषिद्ध: राक्षस विवाह हिंदू धर्म में निषिद्ध है।
  • अनैतिक: यह विवाह अनैतिक और अमानवीय है।
  • हिंसा: यह विवाह हिंसा और बलप्रयोग पर आधारित है।
  • समाज के लिए हानिकारक: यह विवाह समाज के लिए हानिकारक है।

राक्षस विवाह के उदाहरण:

  • राक्षस राजा रावण द्वारा सीता का अपहरण कर विवाह का प्रयास
  • भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी का विवाह (कुछ विद्वानों के अनुसार)

आजकल राक्षस विवाह:

आजकल, राक्षस विवाह लगभग समाप्त हो गया है।

यह समाप्त होने के कुछ कारण:

  • हिंदू धर्म में इस विवाह का निषेध: हिंदू धर्म में राक्षस विवाह निषिद्ध है।
  • सामाजिक जागरूकता: लोगों में सामाजिक जागरूकता बढ़ी है और वे इस विवाह को बुरा मानते हैं।
  • कानूनी प्रतिबंध: कई देशों में इस विवाह को कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है।

राक्षस विवाह, हिंदू विवाह का एक अमानवीय और अनैतिक रूप है। यह विवाह हिंसा और बल प्रयोग पर आधारित है और समाज के लिए हानिकारक है।

यह महत्वपूर्ण है कि हम इस विवाह के खिलाफ आवाज उठाएं और इसे पूरी तरह से समाप्त करने का प्रयास करें।

8. पैशाच विवाह: अधम विवाह का प्रतीक

पैशाच विवाह, हिंदू धर्म में आठ प्रकार के विवाहों में से अंतिम विवाह है। यह विवाह अपनी अत्यंत अवांछनीय प्रकृति, अनैतिकता और अमानवीयता के लिए जाना जाता है।

पैशाच विवाह की विशेषताएं:

  • मदहोशी या बेहोशी का लाभ: इस विवाह में वर कन्या को मदहोशी या बेहोशी की अवस्था में उठा ले जाता है और उससे विवाह करता है।
  • कन्या की इच्छा की अनदेखी: इस विवाह में कन्या की इच्छा को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता है।
  • हिंसा और बल: इस विवाह में बल का प्रयोग और हिंसा शामिल हो सकती है।
  • अनैतिकता: यह विवाह अत्यंत अनैतिक और अमानवीय प्रथाओं पर आधारित होता है।

पैशाच विवाह का महत्व:

  • हिंदू धर्म में निषिद्ध: पैशाच विवाह हिंदू धर्म में निषिद्ध और अधम माना जाता है।
  • अनैतिक: यह विवाह अत्यंत अनैतिक और अमानवीय है।
  • हिंसा और शोषण: यह विवाह हिंसा और कन्या का शोषण करता है।
  • समाज के लिए हानिकारक: यह विवाह समाज के लिए हानिकारक और अवांछनीय है।

पैशाच विवाह के उदाहरण:

  •  विदेशी कुछ जन जातियों में या प्रथा प्रचलित है।

आजकल पैशाच विवाह:

आजकल, पैशाच विवाह लगभग समाप्त हो गया है।

यह समाप्त होने के कुछ कारण:

  • हिंदू धर्म में इस विवाह का निषेध: हिंदू धर्म में पैशाच विवाह निषिद्ध और अधम माना जाता है।
  • सामाजिक जागरूकता: लोगों में सामाजिक जागरूकता बढ़ी है और वे इस विवाह को बुरा मानते हैं।
  • कानूनी प्रतिबंध: कई देशों में इस विवाह को कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है।

पैशाच विवाह, हिंदू विवाह का एक अत्यंत अवांछनीय, अनैतिक और अमानवीय रूप है। यह विवाह हिंसा, शोषण और कन्या की इच्छा की अनदेखी पर आधारित है।

यह महत्वपूर्ण है कि हम इस विवाह के खिलाफ आवाज उठाएं और इसे पूरी तरह से समाप्त करने का प्रयास करें।

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