राजनीतिक दल मुफ्त का लालच दिखाकर लोगो को अपने पक्ष में वोट करने को, बना लिया अपने चुनाव का मूल मंत्र
भारत में सबसे पहला लोकसभा का चुनाव वर्ष 1952 में हुआ था। तभी से हर 5 वर्ष के अंतराल पर देश में चुनाव की प्रक्रिया होती है। देश में कई सारे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं, जो चुनाव लड़ते हैं। बीते चुनावों की बात करें तो राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली/पानी, महिलाओं और श्रमिको को भत्ता, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त स्मार्टफोन से लेकर मुफ्त राशन, मुफ्त रसोई गैस तक कि स्किम देते हैं। इसे राजनीतिक भाषा में फ्रीबीज या रेवड़ी कल्चर कहा जाता है। वर्तमान चुनावों में ये कल्चर गेम चेंजर का काम करता है। वर्तमान में इस मुफ्तखोरी को लगभग हर राजनीतिक दल ने अपने चुनाव का मूल मंत्र बना लिया है।
मुफ्त की वस्तुएं देश की आर्थिक गतिविधियों को काफी प्रभावित करती हैं। राजनीतिक दल अपनी चुनावों में मुफ्त सेवाएं देने का वादा तो करते हैं लेकिन, इसे राजस्व के पैसों से पूरा करते हैं। हम सभी जानते हैं कि किसी भी देश का राजस्व जनता के दिए टैक्स से चलता है। जो देश में विकास करने और देश हित में लिया जाता है। सरकारी कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है। शोध छात्रों को स्टाइपेंड, छात्रवृत्ति दी जाती है। ऐसे में जब इनमें मुफ्त का बोझ पड़ता है तो परिणाम बड़ा ही महंगा होता है।
रेवड़ी कल्चर {Revdi culture}
बीते वर्ष श्रीलंका में जब आर्थिक संकट Revdi culture का ही परिणाम था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका के हालातों से सीख लेने को और Revdi culture से बचने की सलाह दी । PM मोदी ने भी इस Revdi culture की निंदा की है, लेकिन अभी हाल ही में मध्यप्रदेश, 36गढ़ और राजस्थान समेत 5 राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में बीजेपी, कांग्रेस एवं अन्य दलों ने अपने वादों में मुफ्त योजनाओं की झड़ी लगा दी थी। आइए जानते हैं कि इस “Revdi culture” की शुरुआत कहां से हुई:-
कहाँ हुई शुरुआत
हर खोज की तरह इस Revdi culture का आरंभ भी भारत से ही हुआ। वर्ष 2006 में तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनावों में पहली बार DMK ने सरकार बनने पर सभी परिवार को रंगीन टीवी मुफ्त देने का वादा किया था। पार्टी की तरफ से कहा गया कि हर घर में टीवी होने से घर की महिलाएं साक्षर होंगी। हालांकि, DMK के इस चुनावी वादे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई। DMK चुनाव जीत गई, और अपने इस वादे को पूरा भी किया। DMK को वादा पूरा करने के लिए 750 करोड़ रुपए का बजट लगाना पड़ा। अभी ये मामला कोर्ट में चल ही रहा था कि वर्ष 2011 में फिर विधान सभा के चुनाव हुए। चुनाव में विपक्षी पार्टी अन्ना द्रमुक ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मतदाताओं को लुभाने के लिए मिक्सर ग्राइंडर, फैन, लैपटॉप, कंप्यूटर, सोने की थाली जैसी वस्तुएं मुफ्त में देने का वादा किया। साथ ही साथ लड़कियों की शादी के लिए 50 हजार रुपए और राशन कार्ड वालों को 20 किलो चावल देने का भी वादा किया। मतदाताओं ने भी अपने मत का इस्तेमाल किया और अन्ना द्रमुक को विजयी बनाया।
फ्रीबीज या Revdi culture क्या है ?
दरअसल, फ्रीबीज की कोई स्प्ष्ट परिभाषा नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के हलफनामे
के अनुसार, अगर प्राकृतिक आपदा या महामारी के समय दवाएं, खाना या पैसा मुफ्त में दिया जाता है तो ये फ्रीबीज के अंतर्गत नहीं आते हैं इसके अलावा अन्य दिनों में ये सारी वस्तुएं मुफ्त में दी जाए तो फ्रीबीज मानी जाती हैं।
वहीं रिजर्व बैंक के अनुसार, ऐसी योजनाएं जिनसे क्रेडिट कल्चर कमजोर होता हो, सब्सिडी की वजह से कीमतों में उतार चढ़ाव हो, निजी निवेश में कमी हो और श्रमिकों के काम करने में कमी हो तो वो फ्रीबीज के श्रेणी में आता है।
सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?
वर्ष 2013 के अपने फैसले में कोर्ट ने कहा, फ्रीबीज सभी लोगों को प्रभावित करती है। जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाकर रख देती हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेशित करते हुए कहा, वो सभी राजनीतिक पार्टियों से सलाह मशविरा करके एक अचार सहिंता बनाए।
आयोग ने वर्ष 2015 में राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए अचार सहिंता जारी भी की, लेकिन उसके बावजूद भी चुनावों में Revdi culture को बढ़ावा मिल ही रह है।

Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।
[…] ने अपने दाम को बढ़ाने के पीछे इनपुट कॉस्ट में वृद्धि की वजह बताया है, जिससे कंपनी को […]
[…] है। और ‘मुकम्मल इश्क’ सब्जी के साथ मुफ्त में धनिया कैसे मिले, रास्ते से ब्रेड लाते […]