सुभाष चंद्र बोस भारत के गौरवमयी इतिहास के जननायक हैं। सुभाषचंद्र बोस ने भारत की क्रांति में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। सुभाषचंद्र बोस ने आजादी के कई आंदोलनों का नेतृत्व भी किया। आज यानी 23 जनवरी को सुभाषचंद्र बोस की जयंती है। इस वर्ष सुभाषचंद्र बोस की यह 127वीं जयंती मनाई जाएगी।
सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में कई क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोहा लिया, लेकिन सुभाषचंद्र बोस का तरीका बाकियों से अलग था। आज देश भर में सुभाषचंद्र बोस के सम्मान और उनके पराक्रम को सराहने के लिए “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, सुभाषचंद्र बोस की जयंती को वर्ष 2021 से पीएम मोदी के घोषणा के बाद “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
सुभाषचंद्र बोस ने अपने समय के युवाओं में देश के लिए लड़ने का जोश भरा। सुभाषचंद्र बोस को नेताजी के नाम से भी जाना जाता है। सुभाषचंद्र ने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” और “चलो दिल्ली” जैसे प्रेरणादायक नारे दिए। इन नारों से देश में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ और एक बड़ी संख्या में भारतीयों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया। सुभाषचंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की। आइए जानते हैं सुभाषचंद्र बोस के जीवन के बारे में
सुभाषचंद्र बोस के जन्म एवं शिक्षा दीक्षा:-
सुभाषचंद्र बोस के जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में इन बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाषचंद्र बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। सुभाषचंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा के लिए रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो कोलकाता आए, और प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। लेकिन, उनके उग्र स्वभाव के कारण उन्हें वहां से निकाल दिया गया। इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद वे वर्ष 1919 में सिविल सेवा की परीक्षा के लिए इंग्लैंड गए।
सुभाषचंद्र बोस ने वर्ष 1920 में सिविल सेवा को पास किया। उनका इस परीक्षा में चौथा रैंक था, लेकिन भारत को गुलामी में जकड़ा देख उनका विचार बदला। इसके बाद सुभाषचंद्र बोस ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देना शुरू किया। दरअसल, नेता जी का मानना था कि यदि अंग्रेजों से देश को आजाद कराना है तो इनकी ही भाषा में इन्हें जवाब देना होगा। आजादी ऐसे चुप बैठे रहने से नहीं लड़कर ही मिल सकती है।
सुभाषचंद्र बोस स्वामी विवेकानंद जी से काफी प्रभावित थे। उनके उपदेशों को पढ़ना और उनसे लगातार सीखना उनकी दिनचर्या का हिस्सा थी। सुभाषचंद्र बोस स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। सुभाषचन्द्र बोस ने चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु बनाया था।
नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में मानी जाती है लेकिन इसका कोई पुख्ता सबूत मौजूद नहीं है।
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Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।