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शहीदी दिवसगुरु तेगबहादुर

 

योगी सरकार 28 नवम्बर को  मना रही है, धर्म के प्रति सदैव अडिग रहने वाले सिखों के नवें गुरु का शहीदी दिवस:

भारत के गौरवमयी  इतिहास में अनगिनत ऐसे योद्धाओं का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है, जिन्होंने अपने धर्म, संस्कृति, आदर्शों एवं मूल्यों की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इन्हीं वीरों में से एक गुरु तेग बहादुर का नाम भी है। गुरु तेग बहादुर सिखों के नवें गुरु थे। हर वर्ष 28 नवंबर को गुरु तेग बहादुर का शहीदी दिवस मनाया जाता है।

21 अप्रैल 1621 को गुरु तेगबहादुर का जन्म अमृतसर में हुआ था। इनके बचपन का नाम त्यागमल था। इनके पिता का नाम गुरु गोविंद और माता का नाम नानकी था। इनके पिता सिखों के छठें गुरु थे। अपने भाइयों में तेग बहादुर सबसे छोटे थे। इनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई इनके भाइयों के साथ ही हुई।

कैसे बनें त्यागमल से गुरु तेगबहादुर:

बालक त्यागमल बचपन से साहसी,वीर और पराक्रमी थे। हर चुनौती का सामना डट कर करना इन्हें बखूबी आता था। एक बार त्यागमल अपने पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ करतारपुर की लड़ाई के बाद किरतपुर वापस लौट रहे थे। तभी अचानक से फगवाड़ा के पास पलाही गांव में मुगलों की टुकड़ी ने इनपर हमला बोल दिया। जब यह घटना घटित हुई, त्यागमल की उम्र महज 13 साल की थी। पिता हरगोबिंद साहिब के साथ बालक त्यागमल ने इस हमले का मुहतोड़ जवाब दिया। इसी घटना के बाद से बालक त्यागमल से गुरु तेगबहादुर बन गए।

गुरु तेगबहादुर कब बनें 9वें गुरु:

शहीदी दिवस
शहीदी दिवस: शीशगंज साहिब गुरुद्वारा (दिल्ली)

सिखों के 8वें गुरु हरकृष्ण साहिब जी के निधन के बाद मार्च 1665 में अमृतसर के गुरु की गद्दी पर गुरु तेगबहादुर को बैठाया गया। इस तरह गुरु तेगबहादुर सिखों के 9वें गुरु बनें।

गुरु तेगबहादुर ध्यान करने में विश्वास रखते थे। कई वर्षों तक इन्होंने बाबा बकाला नगर में कठोर साधना भी की।

गुरु तेगबहादुर की शादी वर्ष 1632 में करतारपुर में बीबी गुजरी से हुई।

मार्च, 1632 में गुरु तेग बहादुर की शादी जालंधर के नजदीक करतारपुर में बीबी गुजरी से हुई। गुरु तेगबहादुर के पुत्र हुए गुरु गोबिंद सिंह, जो सिखों के 10वें गुरु बनें।

गुरु तेगबहादुर ने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए विभिन्न जगहों की यात्राएं की। गुरी तेगबहादुर जहां भी जाते लोगों को संयम और सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते थे। अपनी यात्रा के दौरान गुरु तेगबहादुर दमदमा साहिब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे। यहां से यमुना किनारे होते हुए कड़ा मानकपुर पहुंचे और यहां साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया। इसके बाद गुरु तेगबहादुर ने प्रयाग, काशी, पटना, असम तक कि यात्राएं की। गुरु तेगबहादुर ने अपनी संपूर्ण यात्रा में लोगों को सेवा और सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा दी।

कश्मीरी पंडितों की मदद को आगे आये :

गुरु तेगबहादुर के समकालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन था। औरंगजेब बेहद ही कट्टर और क्रूर शासक था। गैर मुस्लिमों का जबरन धर्म परिवर्तन करवाना, अत्याचार, स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार जैसे काम इसके प्रमुख थे। औरंगजेब की दमनकारी नीतियों से सारी प्रजा दुःखी थी। गैर मुस्लिमों का जीना दूभर हो चुका था, मंदिर, गुरूद्वारों को तोड़कर मस्जिद बनाने का काम जोरों पर था। इसी कड़ी में औरंगजेब की नजर कश्मीर और कश्मीरी पंडितों पर गई। उसने इनका भी धर्म परिवर्तन करने का भरसक प्रयास किया। ऐसे में कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी शरण में पहुंचे और मदद की गुहार लगाई। कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होता देख गुरु तेगबहादुर  ने औरंगजेब से लोहा लेने का बीड़ा उठाया।

गुरु तेगबहादुर ने कश्मीरी पंडितों को उनकी रक्षा का आश्वासन दिया। औरंगजेब की धर्म परिवर्तन की नीतियों का खुलकर विरोध किया। गुरु तेगबहादुर का यह कदम औरंगजेब को नागवार गुजरा। वर्ष 1675 में जब गुरु तेगबहादुर अपने सिख साथियों के साथ आनंदपुर से दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे, उसी समय मुगल सेना ने उन्हें बीच रास्ते में पकड़ लिया। इसके बाद अत्याचार की जो पराकाष्ठा औरंगजेब ने लांघी, उसका इतिहास गवाह है। गुरु तेगबहादुर को औरंगजेब ने कई महीनों तक कैद में रखा।

अपने धर्म पर अडिग रहे :

गुरु तेगबहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश किया जाने लगा। इतिहास के अनुसार, औरंगजेब ने उनसे तीन बातें कहीं,” 1. उन्हें कलमा पढ़कर इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया। 2. उन्हें कोई चमत्कार दिखाने को कहा गया। 3. उन्हें मौत स्वीकार करने को कहा गया।

गुरु तेग बहादुर ने मौत को सहर्ष स्वीकार किया। इसके बाद वर्ष 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक पर उनका सर कलम कर दिया गया। आज वर्तमान में उसी जगह पर लाल किले के सामने शीशगंज साहिब गुरुद्वारा स्थित है।

गुरु तेगबहादुर की शहीदी युगों युगों तक अमर हुई।

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Rajesh Mishra
Writer at Hind Manch

राजेश मिश्रा

आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।

आप  THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।

By Rajesh Mishra

राजेश मिश्रा

आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं। आप  THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।

2 thoughts on “शहीदी दिवस: सिखों के नौंवे गुरु, गुरु तेगबहादुर की शौर्य गाथा”

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