भारत के आजादी के संघर्ष में क्रांतिकारियों की किसी घटना का सबसे ज्यादा महत्व रहा है तो वह शायद काकोरी कांड का ही रहा है. इस घटना ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था ।और पूरे देश में सनसनी फैल गई थी. वैसे तो इस षड़यंत्र में केवल 10 क्रांतिकारी शामिल थे, लेकिन 40 लोग गिरफ्तार हुए थे.
इसके बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला कर रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई।इनमें से बिस्मिल, अशफाक और रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई लेकिन वह भी अलग अलग जगहों पर। 19 दिसंबर को देश में शहादत दिवस मनाया जाता है. इस दिन का ऐतिहासिक और देशप्रेम के लिहाज से बहुत महत्व है।
कहानी काकोरी कांड की :-
शाहजहांपुर के रहने वाले मुरलीधर दूबे के बेटे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल 9 अगस्त 1925 को चंद्रशेखर आजाद सहित अपने नौ साथियों के साथ 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर पर शाहजहांपुर में सवार हुए। काकोरी में चेन पुलिंग की और क्रांतिकारियों ने खजाने को लूट लिया। क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए हथियारों की जरूरत थी। उनके पास इतना धन नहीं था कि वे हथियार खरीद सकें। इसलिए ब्रिटिश सरकार की तिजोरी लूट ली। घटनास्थल से मिली एक चादर के आधार पर घटना में शामिल क्रांतिकारियों की शिनाख्त हो गई।
राजद्रोह के आरोप में सुनाई फांसी
इनमें से चार को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल, असफाकउल्लाह खान को फैजाबाद, रोशन सिंह को नैनी सेंट्रल जेल और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को गोंडा जेल में एक दिन और एक ही समय पर फांसी देने का फैसला किया गया। बाद में इसमें बदलाव किया गया और असफाकउल्लाह के साथ ही राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी को दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही फांसी दे दी गई।
कोठरी नंबर सात में रहे थे बिस्मिल
पं. राम प्रसाद बिस्मिल को जिला कारागार लखनऊ से 10 अगस्त 1927 को गोरखपुर जेल लाया गया था। उन्हें कोठरी संख्या सात में रखा गया था। उस समय इसे ‘तन्हाई बैरक’ कहा जाता था। बिस्मिल ने चार महीने 10 दिन तक इस कोठरी को साधना केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बैरक के नाम से संरक्षित किया गया है।
ऐसे आया सरकारी खजाना लूटने का आइडिया….
क्रांतिकारियों के पास ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए जज्बा था… हिम्मत थी.. औऱ उम्मीद थी… लेकिन कहते हैं ना कि भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला ले तेरी कंठी ले तेरी माला… अंग्रेजी शासन से लड़ने के लिए पैसों और हथियार की जरूरत थी। युवा क्रांतिकारियों के पास यहीं से दिमाग में खुरापाती आइडिय़ा चलने लगा था…
ये बात क्रांतिकारियों के दिमाग में चल ही रही थी कि एक रोज रामप्रसाद बिस्मिल ने शाहजहांपुर से लखनऊ की ओर सफर के दौरान ध्यान दिया कि स्टेशन मास्टर पैसों का थैला गार्ड को देता है, जिसे वो ले जाकर लखनऊ के स्टेशन सुपरिटेंडेंट को देता है… फिर क्या था बिस्मिल ने तय किया कि इस पैसे को हर हाल में लूटना है… बस यहीं से काकोरी लूट की नींव पड़ी।
काकोरी का किस्सा भगत सिंह की जुबानी……
9 अगस्त 1925 को काकोरी में जो हुआ वह देश की आजादी का वो कांड है जिसे सुनकर हर कोई सहम उठता है… ये कोई मामूली लूट नहीं थी बल्कि अंग्रेजी हुकूमत को हिला देने वाला लूट कांड था… इस घटना के ऊपर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने काफी विस्तार से लिखा है… उन दिनों छपने वाली पंजाबी पत्रिका ‘किरती’ में भगत सिंह ‘काकोरी के वीरों से परिचय’ नाम के लेख में लिखते हैं।
9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन से एक ट्रेन चली. ये करीब लखनऊ से 8 मील की दूरी पर था, ट्रेन चलने के कुछ ही देर बाद उसमें बैठे 3 नौजवानों ने गाड़ी रोक दी.. उनके ही अन्य साथियों ने गाड़ी में मौजूद सरकारी खजाने को लूट लिया. उन तीन नौजवानों ने बड़ी चतुराई से ट्रेन में बैठे अन्य यात्रियों को धमका दिया था और समझाया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा बस चुप रहें. लेकिन दोनों ओर से गोलियां चल रही थीं और इसी बीच एक यात्री ट्रेन से उतर गया और उसकी गोली लगकर मौत हो गई…
इसके बाद अंग्रेजों ने इस घटना की जांच बैठा दी. सीआईडी के अफसर हार्टन को जांच में लगा दिया गया. उसे मालूम था कि ये सब क्रांतिकारी जत्थे का किया धरा है.. कुछ वक्त बाद ही क्रांतिकारियों की मेरठ में होने वाली एक बैठक का अफसर को पता लग गया और छानबीन शुरू हो गई. सितंबर आते-आते गिरफ्तारियां होनी शुरू हो गईं।’
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने लिखा है:-
लिख रहा हूँ मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर कतरा इंकलाब लाएगा.
मैं रहूँ या ना रहूँ पर एक वादा है तुमसे मेरा कि मेरे बाद वतन पे मरने वालो का सैलाब आएगा.
किस्सा:- फांसी के कुछ घंटे पहले जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करता देख सहम गए थे अंग्रेज अफसर….
19 दिसंबर 1927 को सुबह छह बजे काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी जानी थी। फांसी दिये जाने से कुछ ही घंटे पूर्व बैरक में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करते देख जेलर व पहरा अचंभित रह गए थे। जेलर उनसे पूछा था कि पंडित- तुम्हें कुछ ही घंटे में फांसी होनी है। कसरत क्यों कर रहे हो। पंडित जी ने जवाब दिया था कि यह भारत माता की चरणों में अर्पित होने वाला फूल है। मुरझाया हुआ नहीं होना चाहिए। स्वस्थ व सुंदर दिखना चाहिए।
डर के कारण अंगेजो ने तैयार किये
3 शहर, 3 जेलें, 3 फंदे:-
अंग्रेज इन क्रांतिकारियों को फांसी देने से डर रहे थे. उन्हें यह आशंका थी कि बड़ी संख्या में लोग इन क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए जेलों पर हमला कर सकते है. इसीलिये सभी तीनो को अलग अलग जगहों पर रखा गया। रामप्रसादबिस्मिल को गोरखपुर, अशफाकउल्ला को फैजाबाद और रोशनसिंह को इलाहबाद में एक ही दिन फांसी दी गई थी।
किस्सा 2 :- फांसी के समय जब माँ को देखकर रो पड़े थे बिस्मिल….
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की माता मूलरानी ऐसी वीरमाता थीं जिनसे वे हमेशा प्रेरणा लेते थे। शहादत से पहले ‘बिस्मिल’ से मिलने वे गोरखपुर जेल पहुंचीं तो पंडित बिस्मिल की डबडबाई आंखें देखकर भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया। कलेजे पर पत्थर रख लिया और उलाहना देती हुई बोलीं, ‘अरे, मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहुत बहादुर है और उसके नाम से अंग्रेज सरकार भी थरथराती है। मुझे पता नहीं था कि वह मौत से इतना डरता है।
उनसे पूछने लगीं, ‘तुझे ऐसे रोकर ही फांसी पर चढ़ना था तो तूने क्रांति की राह चुनी ही क्यों? तब तो तुझे इस रास्ते पर कदम ही नहीं रखना चाहिए था।’ इसके बाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी आंखें पोंछ डालीं और कहा था कि यह आंसू मौत के डर से नहीं, तुमसे बिछड़ने के शोक में आए हैं।
यह भी जाने :-
एनकाउंटर में शहीद हो गए चंद्रशेखर आजाद
काकोरी डकैती में प्लानिंग में कमियों की कारण एक महीने के अंदर-अंदर लगभग 40 लोगों की गिरफ्तारियां हुईं. इनमें स्वर्ण सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाखान, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, रोशन सिंह, सचींद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, विष्णु शरण डबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, शचींद्रनाथ सान्याल एवं मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे. इनमें से 29 लोगों के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया था. 29 लोगों के खिलाफ स्पेशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चला.
अप्रैल 1927 को आखिरी फैसला सुनाया गया था, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. जिन लोगों पर मुकदमा चलाया गया उनमें से कुछ को 14 साल तक की सजा दी गई और दो लोग सरकारी गवाह बन गए, इसलिए उनको माफ कर दिया गया. दो और क्रांतिकारी थे जिन्हें भी छोड़ दिया गया. हालांकि चंद्रशेखर आजाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन बाद में एक एनकाउंटर में वह भी शहीद हो गए।
●राम प्रसाद बिस्मिल-
राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. उन्होंने काकोरी कांड में मुख्य भूमिका निभाई थी. वे एक अच्छे शायर और गीतकार के रूप में भी जाने जाते थे।
●अशफाक उल्ला खां-
अशफाक उल्ला खां का जन्म शाहंजहांपुर में हुआ था. उन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अशफाक उल्ला खां उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे. अशफाक उल्ला खां और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल गहरे मित्र थे।
●रोशन सिंह –
रोशन सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर स्थित नवादा गांव में हुआ था. रोशन सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई थी. कुछ इतिहासकारों को मानना है कि काकोरी कांड में शामिल न होने के बावजूद उन्हें 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद के नैनी जेल में फांसी दी गई थी।
किस्सा 3:-सरफरोशी की तमन्ना
काकोरी कांड में गिरफ्तार होने के बाद अदालत में सुनवाई के दौरान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल ने ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?’ की कुछ पंक्तियां कही थीं. बिस्मिल कविताओं और शायरी लिखने के काफी शौकीन थे. फांसी के फंदे को गले में डालने से पहले भी बिस्मिल ने ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ के कुछ शेर पढ़े. वैसे तो ये शेर पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी की रचना थी. लेकिन इसकी पहचान राम प्रसाद बिस्मिल को लेकर ज्यादा बन गई.

Lokendra Singh Tanwar
लोकेन्द्र सिंह तंवर
आप मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के नागदा तहसील के रहने वाले हैं। आपने उज्जैन के विक्रम विश्विद्यालय से पत्रकारिता मास कम्युनिकेशन में एम.ए किया है। इससे पूर्व में नईदुनिया अखबार में एक वर्ष इंटरशिप किया है। जागरण,शिप्रा संदेश, दस्तक,अक्षर विश्व, हरिभूमि जैसे अखबारों में ऑथर के रूप में काम किया है। आप लोगो से मिलने ,उनके बारे में जानने, उनका साक्षात्कार करने उनके जीवन की सकारात्मक कहानी लिखने का शोक रखते हैं। साथ ही कुछ प्रोग्राम से जुड़ कर यूथ डेवलपमेंट व कम्यूनिटी डेवलोपमेन्ट पर भी काम कर रहे हैं।
आप The Hind Manch में ऑथर के रूप में जुड़े हैं।
[…] इतने दिन कहां थे, स्कूल क्यों नहीं आए? मोलू- बर्ड फ्लू […]