Lok Sabha Elections 2024 : UP में OBC वोट बैंक ही तय करेगा अगला पीएम!
Lok Sabha Elections 2024 में प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतकर भाजपा को 370 और एनडीए को 400 पार कराने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान को साकार करने के लिए भाजपा अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को साधने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। इस बार के Lok Sabha Elections 2024 में उप्र में ‘मिशन क्लीन स्वीप’ के लिए भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल के साथ पश्चिम उत्तर प्रदेश में भी दबदबा कायम करने के लिए छोटे और क्षेत्रीय दलों से जो गठबंधन किए हैं, उनका उद्देश्य ओबीसी वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करना ही है।
Lok Sabha Elections 2024 में पिछड़ी जातियों की लामबंदी के जरिये बीजेपी सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की धार भी कुंद करना चाहती है। पिछले दो लोकसभा से गैर यादव पिछड़ी जातियों को सहेजने में जुटी भाजपा अब यादव बिरादरी को लुभाकर समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत भी लगा रही है।

Lok Sabha Elections 2024 में पिछड़ी जातियों पर जोर देने की भाजपा की रणनीति के पीछे भारी भरकम ओबीसी वोट बैंक हैं। राजनाथ सिंह सरकार में गठित सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश की कुल जनसंख्या में पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत है। वहीं बता दें कि उत्तर प्रदेश में 79 पिछड़ी जातियां हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने उत्तर उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों को नेतृत्व देने का प्रयोग यूं तो 1980 के दशक से ही शुरू कर दिया था, लेकिन पिछड़ों को लामबंद करने का सधा और आक्रामक अभियान वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद शुरू हुआ। महेन्द्र नाथ पांडेय के बीच के दो वर्ष के कार्यकाल को अपवाद मान लें तो अप्रैल 2016 से अब तक भाजपा के चार में से तीन प्रदेश अध्यक्ष-केशव प्रसाद मौर्य, स्वतंत्र देव व सिंह और भूपेन्द्र सिंह चौधरी पिछड़ा वर्ग के ही रहे हैं।
Lok Sabha Elections 2024 : हर राजनीतिक दल साधना चाहता है ओबीसी वोट बैंक
वहीं उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों में बीजेपी की पकड़ बनाने के लिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव में उतारने का भी फैसला मील का पत्थर साबित हुआ। उस चुनाव में पीएम मोदी का पिछड़ी जाति से आने का मुद्दा काफी चर्चित और अहम रहा। यही कारण है कि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों और वोटबैंक को साधने के लिए हरसंभव प्रयास किए। जिसमें बीजेपी काफी हद तक सफल भी रही है। जानकारी के लिए बता दें कि पिछड़ी जाति से आने वाली कुर्मी जाति का वर्ष 2014 के लोकसभा के गठबंधन का ही नतीजा रहा।

18वीं Lok Sabha Elections 2024 के चुनाव में उतरने से पहले भाजपा पिछड़ों के बीच जनाधार बढ़ाने में बाधक बने सभी कील-कांटे दुरुस्त करने में जुटी है। पिछले वर्ष सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) की एनडीए और योगी सरकार के पहले कार्यकाल में वन मंत्री रहे दारा सिंह चौहान की भाजपा में वापसी भी पिछड़ों में पैठ बढ़ाने की मुहिम का हिस्सा थी।

सुभासपा का दखल पूर्वांचल के आजमगढ़, वाराणसी, गोरखपुर और देवीपाटन मंडलों के कई जिलों में खासा राजनीतिक प्रभाव रखने वाली अति पिछड़ी जाति राजभर और विभिन्न उपजातियों के बीच है। वहीं दारा सिंह चौहान पूर्वांचल के मऊ, आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर चंदौली आदि जिलों में खासी तादात में मौजूद लोनिया चौहान बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं।
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पूर्वांचल में जातीय समीकरण साधने के बाद भाजपा की निगाहें पश्चिमी उप्र की ओर थीं। किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की पिछले माह घोषणा कर उसने एक तीर से दो पश्चिमी उप्र की जाट बिरादरी में निशाने साधे। व्यापक जनाधार रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल को अपने पाले में खींचकर उसने उप्र में इंडिया गठबंधन को तगड़ा झटका दिया।

Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।