बोधि दिवस 2023: बोधि दिवस 8 दिसंबर को, जानिए गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के दिन का महत्व और इतिहास
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। बौद्ध धर्म पूरी दुनिया में माने जाने वाले धर्मो में प्रमख है। भारत सहित श्रीलंका, थाईलैंड, तिब्बत, जापान जैसे देशों में बौद्ध अनुयायियों की काफी संख्या है। बुद्ध ने विश्व को सत्य, अहिंसा, प्रेम, सद्भाव का मार्ग दिखाया है। बड़े-बड़े चिंतकों ने बौद्ध धर्म को
आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बताया है।
हर वर्ष 8 दिसंबर को बोधि दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये वो दिन है जब पहली बार ध्यानमग्न बुद्ध को ज्ञान का आभास हुआ था। इसीलिए, पूरे विश्व में आज का दिन बौद्ध अनुयायियों के लिए बेहद खास माना जाता है। आइए जानते हैं बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के बारे में,
बुद्ध का जन्म,
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. बैशाख पूर्णिमा के दिन लुम्बनी (नेपाल) में हुआ था। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोधन और माता का नाम महामाया था। सिद्धार्थ के पिता शाक्य वंश के क्षत्रिय थे और माता कोलिया गणराज्य की राजकुमारी थी। एक बार राजा शुद्धोधन के महल में एक ऋषि का आगमन हुआ और वे बालक सिद्धार्थ को देखते हुए बोले- ये बालक एक दिन या तो बहुत बड़ा संत बनेगा या चक्रवर्ती सम्राट।
राजा शुद्धोधन ने संत की बात को गंभीरता से लेते हुए, बालक सिद्धार्थ को महल से कही बाहर जाने ही नहीं दिया और उन्हें हर सुख की व्यवस्था की, जिससे उनके मन में संत बनने का कभी विचार ही न आए। इसके लिए उनका विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में ही कोलिय वंश की राजकुमारी यशोधरा से कर दिया गया।
गौतम का राजमहल से वन का सफर

एक बार की बात है जब गौतम बुद्ध अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ रहे थे, उन्हें कई लोग दिखे। जिनमें रोगी, बूढ़ा व्यक्ति, संत और मृत व्यक्ति को देखा। उन्होंने अपने सारथी से पूछा कि “यह कौन लोग है, सारथी ने बताया कि यह सभी अपनी अवस्था को जी रहे हैं, हम सभी की एक दिन ऐसी ही अवस्था होने वाली है। राजकुमार सिद्धार्थ पर इन बातों का काफी असर हुआ। इसके बाद एक रात वो महल का सुख, भोग-विलास सब कुछ छोड़कर रात के अंधेरे में , सत्य की खोज और ज्ञान की प्राप्ति के लिए जंगल की ओर निकल पड़े।
जब सिद्धार्थ राजमहल छोड़ जंगल की तरफ निकले, उनकी अवस्था 29 वर्ष की थी। जंगल में कठिन तप करते हुए उन्हें एक रात ज्ञान की प्राप्ति हुई। तत्कालीन, बिहार राज्य के बोध गया में फल्गु (निरंजना) नदी के किनारे वट वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा की रात सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई। आज का दिन पहले ज्ञान प्राप्ति की याद दिलाता है। तभी से वे गौतम बुद्ध कहलाने लगे। दरअसल, बुद्ध का अर्थ होता है जागने वाला, जागृत अवस्था।
बुद्ध का पहला उपदेश:
ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी(काशी) के निकट सारनाथ में दिया था। उनके पहले शिष्यों में ऋषि कौण्डिण्य, वप्प, भद्दीय, अस्सजि और महानाम थे। बुद्ध इतिहास में पहले उपदेश को धर्म चक्र परिवर्तन कहा जाता है। सारनाथ में जिस जगह गौतम बुद्ध को सबसे पहले इन 5 शिष्यों से भेंट हुई, उस जगह को चौखंडी स्तूप के नाम से जाना जाता है। इसी सारनाथ में चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद 261 ई.पू. धमेख स्तूप का निर्माण करवाया है।
बुद्ध के जीवन काल में 5 जगहों का खास महत्व है। लुम्बनी, बोधगया, सारनाथ, श्रावस्ती और कुशीनगर। जहां लुम्बनी में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ, बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई, सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया, श्रावस्ती में गौतम बुद्ध ने अपना अधिक समय बिताया और कुशीनगर में उनकी मृत्यु हुई थी।
गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण,
483 ई. पूर्व में कुशीनारा में गौतम बुद्ध की 80 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई थी। बौद्ध धर्म में उनकी मृत्यु को ही महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।