Lohri Festival 2024: भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है।
भारत में हर मौसम, हर जगह के अनुसार अनगिनत त्यौहारों को बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत में मनाए जाने वाले यह त्यौहार एकता, भाईचारे, खुशहाली एवं नई ऊर्जा के संचार का प्रतीक होते हैं। “लोहड़ी” (Lohri) भी इन्हीं त्यौहारों में से एक है। लोहड़ी (Lohri) को पंजाब, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। लोहड़ी (Lohri) को पंजाबी समुदाय में बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी (Lohri) हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन पंजाबी लोग अपने परिवार, हित-मित्र के साथ मिलते-जुलते हैं, और एक दूसरे को इस दिन की बधाई देते हैं।
लोहड़ी (Lohri) को मनाने के लिए पंजाबी लोग आग के चारों तरफ इकट्ठा होकर परिक्रमा करते हैं। पंजाबी लोग आग में गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, के साथ नई फसल के चावल के दानों को आदि फेंकते हैं। इसके बाद सभी पंजाबी पुरुष और स्त्रियां एक दूसरे को लोहड़ी की बधाई देते हैं, और नृत्य करते हैं। लोहड़ी (Lohri) के दिन ढोल-नगाड़ों के साथ सभी भांगड़ा और गिद्दा करते हैं।

दरअसल, लोहड़ी (Lohri) मौसम और फसल से जुड़ा पर्व है। यह त्यौहार मकर संक्रांति के आसपास मनाया जाता है। जनवरी माह में पड़ने वाले इस त्यौहार को पंजाबी समुदाय बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाता है। लोहड़ी (Lohri) के समय पड़ने वाली ठंड की वजह से आग जलाने की परंपरा है। लोहड़ी (Lohri) को पंजाब में नई फसल की कटाई की खुशी में मनाया जाता है।

बताते चलें कि मौसम और फसल से जुड़े त्यौहार मकर संक्रांति और पोंगल भी है। जहां मकर संक्रांति उत्तर भारत में मनाया जाता है वहीं पोंगल दक्षिण भारत का प्रमुख त्यौहार है। यह दोनों त्यौहार भी नई फसल की कटाई के उपलक्ष्य में ही मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस दिन का क्या महत्व है
लोहड़ी (Lohri) का त्यौहार क्यों मनाया जाता है
दरअसल, लोहड़ी (Lohri) शब्द में ल का मतलब लकड़ी, ओह से गोहा यानी जलते हुए सूखे उपले और ड़ी का मतलब रेवड़ी से होता है। इन्हीं तीन शब्दों को मिलाकर लोहड़ी (Lohri) शब्द बना। लोहड़ी (Lohri) के बाद से ही मौसम में बदलाव होना शुरू हो जाता है। सर्दी का भी असर धीरे-धीरे कम होने लगता है। सर्दी की रात में मनाए जाने वाले इस त्योहार के मौके पर लोग लकड़ी और उपलों की मदद से आग जलाते हैं। उसके बाद इसमें तिल की रेवड़ी, मूंगफली, मक्का आदि से बनी चीजों को डाला जाता है।
लोहड़ी (Lohri) की खास रस्में
लोहड़ी (Lohri) के दौरान अलाव जलाने के बाद परिवार के सदस्य, मित्र, रिश्तेदारों के साथ मिलकर आग के चारों तरफ घूमते हैं। परिक्रमा के दौरान तिल, मूंगफली, गजक, रेवड़ी, चिवड़ा आदि तमाम चीजें आग में डाली जाती है। बाद में इन चीजों को प्रसाद के रूप में भी खाया जाता है। लोहड़ी (Lohri) के दिन पंजाबी भाई बहन नए कपड़े पहनकर तैयार होते हैं। इसके बाद ढोल-नगाड़ों की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। भांगड़ा अजर गिद्दा में पंजाब की विशेष शैली को जानने समझने को मिलता है।

लोहड़ी (Lohri) के दिन दुल्ला भट्टी की कहानी जरूर सुनाई जाती है। इस कहानी के बिना लोहड़ी (Lohri) की रस्म पूरी नहीं हो सकती है।
लोहड़ी (Lohri) के खास मौके पर कुछ पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। नई शादी शुदा महिलाओं के लिए लोहड़ी (Lohri) का त्यौहार बेहद खास होता है।
दुल्ला-भट्टी की कहानी?
ऐसी मान्यता है कि मुगल काल में जब अकबर का शासन था उस समय पंजाब में एक दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति रहता था। उस समय लड़कियों को खरीदा-बेचा जाता था। एक बार लड़कियों की बोली लग रही थी, जिन्हें अमीर व्यापारियों द्वारा खरीदा जा रहा था। दुल्ला भट्टी ने सामान के बदले में इलाके की लड़कियों का सौदा होते देख लिया। इसके बाद उन्होंने बड़ी चतुराई से न सिर्फ उन लड़कियों को व्यापारियों के चंगुल से आजाद कराया, बल्कि उनके जीवन को बर्बादी से बचाने के लिए उनका विवाह भी करवाया। इसके बाद से दुल्ला भट्टी को नायक के तौर पर देखा जाने लगा।
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Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।