चित्रकूट (Chitrakoot) के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसत, तिलक करत रघुवीर।
संतों की नगरी चित्रकूट (Chitrakoot) की महत्ता बताने के लिए उपरोक्त दोहे ही काफी हैं। मंदाकिनी नदी के तट पर बसे इस नगर की महिमा अपरंपार है। प्रभु श्री राम के सभी तीर्थों में चित्रकूट (Chitrakoot) प्रमुख है। भगवान राम की साधना स्थली होने के कारण यहीं पर अन्य साधु-संतों ने इसे अपनी साधना का केंद्र बना लिया। हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए चित्रकूट किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है।
इस नगर के कण-कण में प्रभु श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण की स्मृतियों का दर्शन होता है। चित्रकूट (Chitrakoot) में प्रभु श्री राम, सीता और भाई लक्ष्मण के निवास स्थान को देखने के लिए दूर-दूर से राम भक्त आते हैं। चित्रकूट को प्रभु श्री राम की तपोस्थली भी कहा जाता है। मान्यता है कि प्रभु श्री राम ने वनवास के दौरान अपना सबसे ज्यादा समय इसी स्थान पर बिताया था। प्रभु श्री राम ने माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पूरे साढ़े ग्यारह वर्ष यहां निवास किया था। आज इसी कड़ी में चित्रकूट (Chitrakoot) के ऐसे पहाड़ के बारे में बताने जा रहे हैं,
जिसकी परिक्रमा करने का विशेष महत्व है:

भगवान राम का निवास स्थान था कामतानाथ पहाड़ (Kamtanath Mountain)
(Kamtanath Mountain)
इस पहाड़ का नाम कामतानाथ पहाड़ (Kamtanath Mountain) है, जिसका वर्णन रामायण काल में भी मिलता है। जिसकी परिक्रमा आज भी चित्रकूट (Chitrakoot) घूमने आए दर्शनार्थी करना नहीं भूलते हैं। ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्री राम अपने वनवास काल के दौरान इस पहाड़ में निवास करते थे और नित्य प्रतिदिन इस पहाड़ कि परिक्रमा भी करते थे। एक दिन परिक्रमा के दौरान प्रभु श्री राम के समक्ष कामतानाथ पहाड़ प्रकट हुए, और आशिर्वाद दिया कि जो भी नर नारी इस पहाड़ की परिक्रमा करेगा। उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी। तभी से इस पहाड़ की परिक्रमा करने की परंपरा है।

बताते चलें कि इस पहाड़ की पूरी दूरी 5 किलोमीटर की है। इस पर्वत की परिक्रमा करने में लगभग 2 घंटे का समय लगता है। परिक्रमा करने के दौरान अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी मिलेंगे, जिनकी अपनी मान्यताएं हैं। ऐसे में यदि कोई भी व्यक्ति चित्रकूट (Chitrakoot) जाता है तो इस पहाड़ की परिक्रमा करना नहीं भूलता। इससे उसके पुण्यकर्म में वृद्धि होती है और उसका कल्याण होता है।
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मिलती है जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति
यहां के पुजारी के अनुसार, यह कामदगिरि भगवान हैं,जो पर्वत रूप में विराजमान हैं। इनका पर्वत ही शरीर है, जिसकी परिक्रमा भक्त करते हैं। चित्रकूट (Chitrakoot) में सबसे ज्यादा पुण्य परिक्रमा के दौरान ही प्राप्त होता है। यह परिक्रमा मानव के सभी कष्टों को हरने वाली होती है। चूंकि, भगवान राम ने स्वयं इस पर्वत की परिक्रमा की, ऐस में भक्त राम नाम का स्पर्श हो और उन्हे इस जीवन से मुक्ति मिल जाए। इसीलिए इस पर्वत की परिक्रमा करने की परंपरा चली आ रही है।

एक बार जब भगवान राम ने चित्रकूट (Chitrakoot) छोड़ने का निर्णय लिया, चित्रकूट पर्वत दुःखी हो गया। पर्वत ने कहा कि अगर आप इस जगह को छोड़ कर चले जाएंगे, तो यहां कोई भी नहीं आएगा। आपके निवास करने से यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता था।
इस पर भगवान राम ने पर्वत कल आशिर्वाद दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे, भक्त आपको कामदगिरि के नाम से जानेंगे। जो भी आपकी परिक्रमा करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। उसपर मेरी विशेष कृपा बनी रहेगी। तभी से पर्वत कामतानाथ पर्वत (Kamtanath Mountain) कहा जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि यह पर्वत भगवान राम का ही रूप है। इसे कहीं से भी देखा जाएगा, इसकी आकृति धनुष के आकार की ही दिखाई देगी।

Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।
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