सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) एक समाज सुधारक,शिक्षिका और कवियत्री थी।
महिलाओं की शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले ने लंबी लड़ाई लड़ी। इन्होंने जाति भेद भाव, छुआ छूत, जैसी समाजिक कुरीतियों का भी खुलकर विरोध किया। सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) ने समाज सुधारने के लिए कलम और स्याही को अपना हथियार बनाया। सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का मानना था कि जब तक शिक्षा की पहुंच समाज के अंतिम व्यक्ति तक नहीं होगी, लोगों में बदलाव नहीं हो सकता है। चूंकि सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) ने महिलाओं की शिक्षा पर ज्यादा बल दिया था, ऐसे में महिलाओं को सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) को धन्यवाद देना चाहिए।
दरअसल, सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) को भी अपने जीवन में जातिगत भेद-भाव, महिला होने के कारण उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा था। जिससे आहत होकर उन्होंने शिक्षा का महत्व समझा और शिक्षा के लिए संघर्ष करना शुरू किया। भारत में सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) को “पहली शिक्षिका” कहा जाता है। जिन्होंने महिलाओं में शिक्षा की जो क्रांति की मशाल जलाई थी, उसकी लौ आज भी जल रही है। उनके ही प्रयासों का परिणाम है कि आज समाज में महिलाओं का योगदान भी आधा हो चुका है। आइए आज सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) के जन्मदिन पर जानते हैं कुछ विशेष बातें:
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का जन्म
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का जन्म आज यानी 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) के पिता का नाम खांडोजी नेवासे पाटिल और माता का नाम लक्ष्मी था, जो माली समुदाय से सम्बंध रखते थे। सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) अपने माता-पिता की तीन संतानों में सबसे छोटी बेटी थी।

मात्र 9 वर्ष की आयु में उनकी शादी ज्योतिराव से कर दी गई। उस समय यह बहुत बड़ी समस्या थी कि लड़कियों की शादी बेहद ही कम उम्र में कर दी जाती थी। आज के समय में जब 9 वर्ष की आयु की लड़की ठीक ढंग से बात भी नहीं कर पाती, उस उम्र में लड़कियों की शादी बेहद ही तकलीफदेह थी।
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) ने इन तमाम कुरीतियों के खिलाफ अपने पति के साथ संघर्ष किया। चूंकि सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) अपनी शादी के दौरान पढ़ी-लिखी नहीं थी। उनके पति ज्योतिराव ने सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) और अपनी बहन सगुणाबाई क्षीरसागर को उनके घर पर ही पढ़ाया।

ज्योतिराव ने प्राथमिक शिक्षा देने के बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए पुणे के सामान्य स्कूल में दाखिल करवाया। इसके बाद सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) और सगुणाबाई की पढ़ाई अहमदनगर के ही एक अमेरिकी मिशनरी स्कूल में हुई, जो सिंथिया फर्रार द्वारा चलाया जाता था। इसी कड़ी में उन्होंने महाराष्ट्र में रहकर उन्होंने पूरे देश की महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और उनकी दशा को सुधारने में बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सावित्रीबाई फुले को भारत में नारीवादी आंदोलन का प्रमुख नेता माना जाता है।
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) की शिक्षा दीक्षा
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) ने अपनी शिक्षा पूरी करके वर्ष 1848 में भिड़े वाडा में आने पति के साथ मिलकर एक स्कूल की स्थापना की। यह स्कूल आधुनिक था, जो लड़कियों की शिक्षा के लिए बनाया गया था। इस तरह सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) देश की पहली भारतीय महिला शिक्षका और प्रिंसिपल बनी। उन्होंने समाज में लड़कियों के प्रति जाति और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और काफी सुधार का काम किया।

चूंकि सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) एक लेखिका और कवियत्री भी थीं। इसी कड़ी में उन्होंने वर्ष 1854 में काव्या फुले और 1892 में बावन काशी सुबोध रत्नाकर साहित्य प्रकाशित किया। सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) ने एक कविता ” जाओ, शिक्षा प्राप्त करो” नामक एक कविता भी लिखी और प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने शिक्षा प्राप्त करके खुद को मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
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Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।
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