Color Therapy: 4000 वर्ष पुराना है कलर थेरैपी का इतिहास
रंगों का अस्तित्व पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। हमारे चारों तरफ रंगों का ही घेरा है। लाल,पिला,नीला,सफेद, न जाने कितने ही रंग हमारे जीवन को रंगीन बनाते हैं। यही कारण है कि इनका महत्व मानव जीवन में काफी महत्वपूर्ण है। रंग, रोगों के इलाज के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं। हालांकि, रंगों से रोगों का इलाज करने की शैली काफी पुरानी है।
Color Therapy: कलर थेरिपी की उत्पत्ति कैसे हुई
जानकारी के लिए बता दें कि Color Therapy को ही ‘क्रोमोथेरेपी’ के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रंग शरीर में कई तत्वों को संतुलित करने का काम करते हैं। चिकित्सा की इस पद्धति में रंगों के साथ ही रोशनी का भी प्रयोग किया जाता है। कलर थेरेपिस्ट मनाते हैं कि रंग इंसान की आंखों और त्वचा में प्रवेश करते हैं। हर रंग की अपनी अलग-अलग तरंग वेव लेंथ और फ्रीक्वेंसी होती है। हालांकि, रंग हर व्यक्ति में अपना अलग-अलग प्रभाव छोड़ते हैं। कलर थेरैपी को क्रोमोथेरेपी’ भी कहा जाता है। इसका इतिहास करीब 4000 साल पुराना है। तब ‘क्रोमोथेरेपी’ यानी रोशनी और अलग-अलग रंगों को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

इस तरह के इलाज को प्राचीन मिस्र, यूनान, चीन और भारत में अपनाया गया। दरअसल, Color Therapy की उत्पत्ति मिस्र में हुई थी। वहां के निवासी इस थेरिपी को भगवान थोथ से जोड़कर देखते है। मिस्र के निवासियों का मानना था कि ‘क्रोमोथेरेपी’ की शुरुआत भगवान थोथ ने की थी। तब लाल, नीले और पीले रंग से इलाज होता था। मिस्र के बाद यूनान में इसके सबूत मिले। दोनों जगहों पर इलाज के लिए रंग-बिरंगे पत्थर, मिनरल्स और क्रिस्टल का इस्तेमाल होता।

उस समय सूरज की रोशनी को भी हीलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता था। उस दौर में लोगों को रंगों की शक्ति पर गहरा यकीन था। लेकिन, बीते कुछ समय में इस पद्धित का चलन तेजी से बढ़ा है। दरअसल, Color Therapy की शुरुआत वर्ष 1933 में भारतीय वैज्ञानिक दिनशाह पी. घड़ियाली ने द स्पेक्ट्रो क्रोमेट्री इनसाइक्लोपीडिया नाम की एक पुस्तक प्रकाशित की। इस किताब में वैज्ञानिक दिनशाह पी. घड़ियाली ने मुख्य रूप से इस बात का पता लगाने का काम किया कि अलग-अलग रंगों की किरणों का जीवों पर अलग-अलग चिकित्सीय असर कैसे और क्यों पड़ता है।
Color Therapy: कलर थेरिपी से रोगों का उपचार
Color Therapy की मदद से शरीर के किसी भाग पर आवश्यक रंग को चमका कर किया जाता है। बीमार व्यक्ति को विशेष रंग की तरफ देखने को कहा जाता है। हालांकि, आंखों और इस थेरिपी का ज्यादा असर न हो इसके लिए इस थेरिपी को काफी सावधानी से किया जाता है। यहां जानकारी के लिए बता दें कि यह मेडिकल साइंस का हिस्सा नहीं है।

दरअसल, कलर थेरैपी प्रक्रिया में मरीज के सामने एक खास रंग का ग्लास रखा जाता है। इसके बाद सूर्य की किरणों को उसके पार बैठे मरीज के सिर पर टकराया जाता है। यदि उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति को बुखार है,इसका मतलब है कि उसके शरीर में लाल रंग की मात्रा ज्यादा है। ऐसे में मरीज की कलर थेरैपी के दौरान बंद कमरे में खिड़की पर नीला ग्लास लगा दिया जाता है। जिससे सूर्य की किरणें मरीज के सिर तक पहुंचती है। इसके बाद मरीज का बुखार ठीक होने लगता है।
ऐसे में ध्यान देने योग्य बातें है कि यदि उस समय सम्बंधित रंग का गिलास उपलब्ध नहीं है तो ग्लास का बॉक्स बनाकर उसमें दूध, पानी, तेल आदि चीजें डालकर रख दें। ध्यान रखने वाली बात यह है कि ग्लास बॉक्स का रंग वही होना चाहिए जिस रंग की किरणें आप पेशेंट को देना चाहते हैं। बॉक्स से किरणें गुजरकर पदार्थ पर जाएगी और यह दवा के रूप में काम करेगा।
आज के समय में कलर थेरिपी से कई रोगों का इलाज किया जा सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि कलर थेरिपी से तनाव, अनिद्रा, अवसाद, ब्लड प्रेशर, त्वचा संबंधी रोग, एंग्जाइटी जैसी खतरनाक बीमारियों को भी ठीक किया जा सकता है।
खबरों से अपडेट रहने के लिए जुड़ें :-

Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।