World WildLife Day 2024 : जानिए विलुप्त हो चुके जीव-जंतु और पेड़-पौधों को
प्रकृति में इंसानों के साथ कई तरह के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, वनस्पति पाए जाते हैं। लेकिन, आधुनिक होती दुनिया में इंसान तो रहते हैं, लेकिन कई जीव-जंतु, पेड़-पौधे विलुप्त हो चुके हैं या होने की कगार पर हैं। ऐसे में इन विलुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए पूरी दुनिया में हर वर्ष 3 मार्च को World WildLife Day मनाया जाता है।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य है कि तेजी से विलुप्त हो रहे जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया जाए। इस दिन लोगों को विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण के फायदे बताकर जागरुक किया जाता है। और वन्यजीव अपराध और वनों की कटाई के कारण वनस्पतियों और जीवों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए आह्वान किया जाता है।

दरअसल, 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए ” World WildLife Day” मनाने का प्रस्ताव पारित हुआ। तब से इस दिन को मनाने के लिए 3 मार्च की तारीख की घोषणा हुई। जानकारी के लिए बता दें कि हर वर्ष इस दिन को एक नई थीम पर मनाया जाता है। बता दें कि इस World WildLife Day 2024 की थीम है “लोगों और ग्रह को जोड़ना: वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज” है। थीम का उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण के डिजिटल युग में एक साझा टिकाऊ भविष्य को देखना है। आइए जानते हैं कि वे कौन सी प्रजातियां हैं जो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्ति के कगार पर हैं
World WildLife Day 2024 : पेड़-पौधे व वनस्पतियां
- होपिया शिंकेंग: ये पौधा एक समय में पूर्वी हिमालय में कभी बड़ी मात्रा में पाया जाता था। लेकिन, इस पौधे का अस्तित्व 100 वर्ष पहले ही खत्म हो चुका है।
- आइलेक्स गार्डनेरियाना : यह पेड़ सदाबहार प्रजाति का है। लेकिन, अंतराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के अनुसार, भारत में
तेजी से जंगलों की कटाई ने इस प्रजाति को विलुप्त कर दिया है।

- मधुका इंसिग्निस : वर्ष 1998 में जारी अंतराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की सूची में इस पौधे को विलुप्त की श्रेणी में रख दिया गया है। हालांकि, यह प्रजाति एक समय भारत के कर्नाटक में पाई जाती थी।
- स्टरकुलिया खासियाना : नार्थ ईस्ट राज्य मेघालय के खासी जनजाति पहाड़ी क्षेत्रों में यह पौधा पाया जाता था। लेकिन, बढ़ती आबादी और आधुनिकता ने भी इस पौधे को तेजी के साथ विलुप्त कर दिया है। अंतराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इसे भी विलुप्त हो चुकी श्रेणी में रखा है। हालांकि, वर्तमान में इसकी सह प्रजातियों की मदद से इसे फिर से जंगलों में उगाया जा रहा है।
World WildLife Day 2024 : विलुप्त हो चुके जंतु
- नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस : यह दरियाई घोड़ा अब विलुप्ति की कगार पर है। बता दें कि वर्ष 2018 के मार्च महीने में इस प्रजाति के अंतिम नर की मृत्यु हो चुकी है। अब इस समय इस प्रजाति की केवल दो जीवित मादा उत्तरी वाइट राइनोसॉरस हैं। ऐसे में जाहिर है कि अब आने वाले समय में इनकी भी प्रजाति विलुप्त हो जाएगी।
- डोडो: डोडो एक पक्षी की प्रजाति है जो मॉरीशस में पाई जाती थी। मिली जानकारी के अनुसार, इसे अंतिम बार 1660 के दशक में देखा गया था। नाविकों के ज्यादा शिकार और जानवरों द्वारा इसके अंडे खाए जाने के कारण यह प्रजाति एक दम विलुप्त हो गई।
- पैसेंजर पीजन: एक समय यात्री कबूतर की संख्या लाखों में हुआ करती थी। लेकिन, बढ़ते शिकार के कारण यह प्रजाति भी गायब हो गई।

- गोल्डन टॉड: वर्ष 1994 में इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया गया। क्योंकि, वर्ष 1989 में इस प्रजाति को कभी देखा नहीं गया। इसकी विलुप्ति के पीछे एक खतरनाक त्वचा रोग माना जाता है, जिसने इसकी आबादी को नष्ट कर दिया था। दुनिया भर में बढ़ता प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और चिट्रिड त्वचा संक्रमण आदि को इसके विलुप्त होने की वजह माना जाता है।
- डच बटरफ्लाई : खेती और घरों के ज्यादा निर्माण से एल्कॉन ब्लू के घरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे ये विलुप्त हो गई। एल्कॉन ब्लू कलर की डच बटरफ्लाई की एक उप-प्रजाति मुख्य रूप से नीदरलैंड के घास के मैदानों में पाई जाती थी. आखिरी बार इसे 1979 में देखा गया था।
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Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।