Kisan Andolan : दिल्ली की तरफ बढ़ रहे किसान संगठन
दिल्ली की तरफ बढ़ रहे किसानों का दल एमएसपी कानून और कर्ज माफी समेत 12 मांगों को लेकर अड़ा हुआ है। सरकार और किसानों के प्रमुख नेताओं के बीच बात बनती नहीं दिख रही है। अब इसी कड़ी में दिल्ली Kisan Andolan में भाग लेने के लिए अब पंजाब किसानों के साथ हरियाणा के किसान संगठन और खापें भी दिल्ली आने की तैयारी में हैं।
हिसार-हांसी, फतेहाबाद से किसानों के जत्थे पंजाब के किसानों का साथ देने के लिए शंभू और दातासिंह वाला बॉर्डर पर पहुंचने लगे हैं। बताते चलें की इस Kisan Andolan में हरियाणा की खाप पंचायतें भी शामिल हो रही है। खाप पंचायतों ने किसान की मांग का समर्थन करते हुए किसानों से बात करने को सरकार से अपील की है।

वहीं किसान आंदोलन में भाग ले रही पगड़ी संभाल जट्टा किसान संघर्ष समिति ने गुरुवार यानि कल सुबह 11 बजे फतेहाबाद में राज्य स्तरीय आपात बैठक बुलाई है। इस आपात कालीन बैठक में संगठन के सदस्यों से चर्चा करने के बाद Kisan Andolan को लेकर चर्चा और आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा। पगड़ी संभाल जट्टा किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष मनदीप नथवान ने कहा कि यह Kisan Andolan शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आ रहे हैं। लेकिन, हरियाणा की भाजपा सरकार किसानों के साथ तानाशाही रवैया अपना रही है, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
Kisan Andolan : आंदोलन में मिला किसानों को खाप पंचायतों का समर्थन
वहीं, किसानों की मांग का समर्थन करते हुए जींद में सर्वजातीय खाप के राष्ट्रीय संयोजक व भारतीय किसान मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी टेकराम कंडेला ने कहा है कि केंद्र सरकार किसानों की एमएसपी का सभी फसलों पर कानूनी दर्जा दिया जाए और कृषि के लिए स्वामीनाथन की रिपोर्ट को पूरी तरह से लागू किया जाए। किसानों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए सभी के कर्ज माफ किए जाएं। कंडेला ने किसान आंदोलन पर बोलते हुए कहा है कि किसानों को शांतिपूर्ण आंदोलन करने से रोका जा रहा है।
Kisan Andolan : चुनावों के वक़्त ही क्यों हो रहे हैं
आम चुनाव के पहले पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन कई सवाल खड़े करता है। चार साल पहले भी तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन मुख्यतः पंजाब से ही शुरू हुआ था। बाद में उसमें हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संगठन भी शामिल हो गए थे। यह समझना कठिन है कि जो किसान देश में सबसे समृद्ध माने जाते हैं और जो न्यूनतम समर्थन मूल्य का सबसे अधिक लाभ उठाते हैं, वे ही बार-बार आंदोलन का सहारा क्यों लेते हैं? इस सवाल के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चार वर्ष पहले पंजाब के किसान संगठनों को आंदोलनरत करने में कांग्रेस की तत्कालीन अमरिंदर सिंह सरकार की प्रमुख भूमिका थी।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी वाले कानून के साथ किसान संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि 60 वर्ष की आयु के बाद हर किसान को प्रति माह दस हजार रुपये की पेंशन दी जाए। आखिर इस तरह की मांग करने वाला कोई भी किसान संगठन यह दावा कैसे कर सकता है कि वह तो अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलनरत है? किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए किए जा रहे उपायों पर प्रश्न खड़े करना बहुत आसान है।
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लेकिन क्या कोई इसे भूल सकता है कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान किस तरह लाल किले में भीषण हिंसा की गई थी और राजमार्गों पर कब्जा कर दिल्ली-एनसीआर के लोगों की जीवनचर्या को कितनी बुरी तरह बाधित किया गया था? क्या कोई किसान संगठन या उनके समर्थन में खड़े दल यह भरोसा दिलाने को तैयार हैं कि इस बार वह सब नहीं किया जाएगा, जो पहले किया गया था? निःसंदेह कुछ प्रश्नों के जवाब केंद्र सरकार को भी देने होंगे और सबसे प्रमुख प्रश्न यही है कि तीन कृषि कानून वापस लेने के बाद किसान संगठनों से जो वायदे किए गए थे, उन्हें पूरा करने की दिशा में क्या किया गया ?

Rajesh Mishra
राजेश मिश्रा
आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। आपने राजकीय पॉलीटेक्निक, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप ऐतिहासिक जगहों पर घूमना और उनके बारे में जानने और लिखने का शौक रखते हैं।
आप THE HIND MANCH में लेखक के रूप में जुड़े हैं।